देवभूमि की ओर.. (Part-1) by- Mrinali Srivastava
ऐसा कहना बिल्कुल गलत होगा कि "मैंने 10 दिन हिमाचल को दिए".. "हिमाचल ने मुझे 10 दिन दिए".. मेरे लिए यही सही वाक्य है.. और इन्ही 10 दिन की कहानी मैं आपके साथ साझा करूंगी..
इस बार मैं पहली बार हिमाचल गई थी.. और पहाड़ों की गोद में पूरे 10 दिन थी.. ये मेरी खुशकिस्मती ही है कि हिमाचल में मेरा कोई अपना रहता है.. जिसकी वजह से मेरी ये यात्रा सफल हो पाई.. वरना देवभूमि हर किसी को ऐसा मौका कहां देती है.. तो मेरी इस ट्रैवेल सीरीज "देवभूमि की ओर.." में मैं आपके साथ 10 दिन की पूरी कहानी शेयर करूंगी.. कि मैं कहां-कहां गई.. मैंने क्या-क्या किया.. और सबसे जरूरी मेरा हिमाचल के साथ इक्सपीरियंस कैसा रहा..
बाकी जो ये पहला पार्ट पढ़ रहे हैं.. और आगे के सारे पार्ट में भी मेरे साथ जुड़े रहेंगे.. उन्हे हिमाचल साल में एक बार ही सही लेकिन क्यों जाना चाहिए.. ये भी मैं जरूर शेयर करूंगी.. और मेरा वादा है कि आप बिल्कुल भी बोर नहीं होंगे...
तो शुरूआत आज से ही करती हूं...
दिल्ली से मेरे कदम बढ़ चुके थे देवभूमि की ओर.. अगर रास्ते की बात करूं तो दिल्ली से हमे BY CAR 11 घंटे लगे थे पालमपुर पहुंचने में.. हां जी #पालमपुर.. वहीं है मेरी भाभी का घर.. और हां इस बार मेरे साथ एक छोटा सा ट्रैवल पार्टनर भी था.. जो पूरे 10 दिन मेरे साथ रहा.. मेरे नन्हे ट्रैवल पार्टनर का नाम है रॉनिका जो केवल 5 साल की है.. ऊपर जिसकी तस्वीर भी है मेरे साथ.. और मैं उसका नाम और तस्वीर यहां इसलिए भी लिख रही हूं, क्योंकि कल वो जब पढ़ना सीख जाएगी.. तो ये पढ़कर उसके चेहरे पर स्माइल जरूर आएगी..
तो सुबह 6 बजे हम घर से निकले थे.. और शाम को 5 बजे हम हिमाचल पहुंच चुके थे.. हिमाचल पहुंचते ही जैसे ही मुझे पहाड़ दिखने लगे.. मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा.. इसका कारण ये है कि मुझे बचपन से ही पहाड़ बेहद पसंद हैं.. एक अलग सा खिचाव है... लोग मुझे बेशक पागल समझेंगे.. लेकिन मेरे पास अगर करने को कुछ नहीं है तो मैं केवल पहाड़ों को ताक कर ही पूरा दिन निकाल सकती हूं.. सच में..
और पहाड़ों के तेढ़े-मेढ़े रास्तों पर आमूमन लोगों को उल्टी आती है.. लेकिन मुझे नहीं आई.. बल्कि जैसे ही तेढ़े-मेढ़े रास्ते शुरू हुए.. ऐसा लगा जिंदगी और गाड़ी दोनों एकदम सही दिशा में जा रही है..
तो ये पार्ट फिलहाल यहीं पर खत्म करती हूं.. लेकिन एक बात.. जो मुझे शायद सबसे आखिरी पार्ट में बतानी चाहिए.. वो मैं आपको इसी पार्ट में बता रही हूं.. वो ये कि देवभूमि में 10 दिन गुजारने के बाद जब मुझे 11वें दिन दिल्ली वापस आना था.. मेरा बिल्कुल मन नहीं था दिल्ली वापस आने का.. और मैं यही सोच रही थी कि क्या रखा है वहां.. क्या करूंगी वहां जाकर..
यहां तक कि अपने घर से निकलते वक्त मेरी आंखों में एक आंसू नहीं आते.. लेकिन हिमाचल से निकलते वक्त मैं रोई थी.. इसी से पता चलता है कि पहाड़ सबको अपना बना लेते है.. हिमाचल जगह ही ऐसी है जो आपको इतने अपनेपन का अहसास दिलाती है.. कि आप वापस नहीं जाना चाहोगे वहां से.. 10 दिन में मुझे एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी नई जगह पर हूं..
Nice Article
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत लोगों के लिए हेल्प करेगी। लेखक को बहुत-बहुत धन्यवाद Very good informationAsk your questions
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